स्वास्थ्य के क्षेत्र में बेहतर रहा बीता साल

स्वास्थ्य के क्षेत्र में बेहतर रहा बीता साल

नरजिस हुसैन

ये साल स्वास्थ्य के क्षेत्र में मिला-जुला माना जा सकता है। इस पूरे साल जहां इस सेक्टर में कुछ नए कानून बनें वहीं कुछ नीतियों और सरकार के शुरू किए गए नए कार्यक्रमों ने स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों को उठाते हुए सुधार की दिशा में कदम बढ़ाए। जो दो नए कानून भारत सरकार ने बनाए है वे वाकई कई मायनों में वक्त की जरूरत माने जाने चाहिए।

पहला कानून है नेशनल मेडिकल कमीशन ऐक्ट, 2019 जिसने करीब 63 साल पुराने इंडियन मेडिकल काउंसिल ऐक्ट को बदलते हुए देश में मेडिकल शिक्षा में बड़े सुधार का दरवाजा खोला है। इसके तहत मेडिकल कांउसिल ऑफ इंडिया जो अब तक देश में मेडिकल शिक्षा को नियमित करने वाली सर्वोच्च संस्था थी उसकी जगह एक ऐसी संस्था लेगी जो इस दिशा में कम फीस में बेहतर शिक्षा देगी। दूसरा कानून है ई-सिगरेट प्रतिबंध ऐक्ट, 2019। अब इसमें सरकार ने ई-सिगरेट के उत्पाद, आयात-निर्यात, ट्रांसपोर्ट, बेचने और विज्ञापन जैसी चीजों पर पूरी तरह से न सिर्फ प्रतिबंध लगाया है बल्कि सजा भी तय की है। ये कानून भारतीय युवाओं को ई-सिगरेट की लत से बचाने के लिए पूरी तरह से कारगर है।

इस बीच नीति आयोग ने भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था को और भी दुरुस्त करने के लिए Building a 21st-century health system for India नाम की एक रिपोर्ट नवंबर में ही निकाली जिसमें देश में स्वास्थ्य क्षेत्र के चुनिंदा क्षेत्रों के लिए नीतियां बनाई गई है जिससे आने वाले वक्त में देशी की सेहत और भी बेहतर हो सके। इस क्षेत्रों में स्वास्थ्य क्षेत्र में वित्त व्यवस्था, रिस्क प्रबंधन, डिजिटल स्वास्थ्य, स्वास्थ्य उपकरणों की खरीद जैसे क्षेत्रों में नई नीतियों पर अमल की बात कही गई है।

इसी साल सरकार ने दो नए कार्यक्रम भी शुरू किए- फिट इंडिया और ईट राइट इंडिया यानी चुस्त भारत और सही खानपान वाला भारत। इन दोनों ही कार्यक्रमों को शुरू करने का मकसद है भारतीयों में खानपान और व्यायाम की आदत डलवाना ताकि इनकी गड़बड़ियों से पैदा होने वाली बीमारियों से वक्त रहते बचा जा सके। दूसरी तरफ, आयुष्मान भारत योजना और प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना अमल में काफी अच्छी रहे।

बीते साल सरकार ने एक और बेहतरीन काम जो किया वह था देश के 75 जिला अस्पतालों को 2021-22 तक मेडिकल कॉलेजों में तब्दील कर देने की घोषणा। इससे ग्रामीण और दूर-दराज के मरीजों को बड़ी राहत मिलेगी और हर इलाज के लिए उन्हें शहरों का मुंह नहीं देखना होगा। ऐसा होने के बाद देश में मेडिकल की पढ़ाई करने वाले इच्छुकों को 15,700 और सीटें उपलब्ध हो जाएंगी।

इसी साल सरकार ने मिशन इंद्रधनुष 2.0 जो अक्तूबर के महीने में शुरू किया गया है उसका उद्देश्य कम टीकाकरण लगवाने वाले इलाकों में व्यापक स्तर पर टीकाकरण कार्यक्रम चलाकर सभी बच्चों को टीकाकरण प्रोग्राम में शामिल करना ताकि एक भी बच्चा मिशन से बाहर न होने पाए। इसके अलावा सरकार ने रोटावायरस वेक्सीन जो 2016 में सिर्फ 11 राज्यों (आंध्रा प्रदेश, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, झारखंड, ओड़ीशा, त्रिपुरा, राजस्थान, असम, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश) में चलाया था उसका दायरा बढ़ाते हुए उसमें बाकी के राज्य और केन्द्र शासित राज्यों को भी शामिल किया गया है। रोटा वाइरस से बच्चों को डायरिया इतना अधिक होा था जिससे उनकी जान चली जाती थी। और इस तरह इस मिशन को पूरे देश में लागू कर दिया गया।

उधर, सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम ने नवंबर में जो रिपोर्ट जारी की उसके तहत देश में पिछले कुछ सालों में मातृत्व मृत्यु दर कम हुई है। यह दर 2014-16 में प्रति 100,000 पर 130 थी जो 2015-17 तक घटकर 122 हो गई है। सरकार ने इसी साल सुरक्षित मातृत्व आश्वासन पहल यानी (SUMAN) प्रोग्राम भी अक्तूबर में शुरू किया है। इसका मकसद हर जच्चा और बच्चा को सार्वजनिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में बराबर स्वास्थ्य सुविधाएं मिले यह सुनिश्चित करना है। उन्हें किसी भी तरह की स्वास्थ्य सुविधा देने से कोई भी मना नहीं कर सकता। 2018 में शुरू की गई आयुष्मान भारत स्कीम में 18 दिसंबर तक 69 लाख लोग देशभर में इलाज की सुविधा ले चुके हैं। इसके साथ ही इस स्कीम में सरकार ने 1.5 लाख सब-सेंटर और प्राइमरी हेल्थ सेंटरों को 2022 तक आधुनिक उपकरणों से लैस कर स्वास्थ्य और आरोग्य सेंटरों में बदलने की कोशिश है। सितंबर तक इन सेंटरों में 1.22 करोड़ लोगों की ओरल कैंसर, औरतों में 49.79 लाख के करीब सर्विकल कैंसर और 82.45 लाख ब्रेस्ट कैंसर की शिनाख्त हुई जिसका इलाज तुरंत शुरू हुआ। इसके अलावा 90,91,903 लोगों के हाईपरटेंशन और 45,288,30 लोगों के मधुमेह का इलाज भी इन्हीं सेंटरों में हुआ।

सरकार ने इस साल डिजिटल हेल्थ को भी काफी तव्वजो दी है ताकि सभी तक स्वास्थ्य कम पैसों में पहुंच सके। सरकार ने नेशनल डिजिटल हेल्थ ब्लूप्रिंट भी जारी किया जो ज्यादा-से-ज्यादा लोगों तक स्वास्थ्य सुविधाओं और सेवाओं को पहुंचाने में सफल हो।

सरकार डॉक्टरों पर लगातार बढ़ते हमलों को रोकने संबंधी कोई भी कानून बनाने में इस साल भी पीछे रही औऱ यह इस साल स्वास्थ्य के क्षेत्र का सबसे पिछड़ा पहलू माना जा रहा है। हालांकि, सरकार ने इस बात पर पूरी रजामंदी दिखाई है कि जल्द ही सरकार खुद इस दिशा में बड़ा बिल लाने की ततैयारी में है जो देशभर के डॉक्टरों और मेडिकल क्षेत्र से जुड़े लोगों को आम आदमी के गुस्से का शिकार बनने से बचाएगा।


सरकार ने 2025 तक सार्वजनिक स्वास्थ्य पर जो सकल घरेलु उत्पाद (जीडीपी) का 2.5 प्रतिशत खर्च तय किया था और जिसके तहत 2017 की हेल्थ पॉलिसी में हर राज्य को 2020 तक अपने बजट का 88 फीसद हिस्सा स्वास्थ्य पर खर्च करने को जो लक्ष्य था वह कहीं पीछे छूट गया। इसके अलावा सेरोगेसी बिल को इस साल भी कानून की शक्ल नहीं मिल पाई और उसे संसद की सेलेक्ट कमेटी में गहन विचार के लिए भेज दिया गया। इस बिल में कोई भी औरत अपनी कोख को किराए पर देकर संतान के इच्छुक दंपति को बच्चा पैदा करने का प्रावाधान है।

 

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